दो ग़ज़लें
प्यार एक नदी है
धार थी पतली, बाढ़ बनती चली जा रही है,
बेबस बहाती मुझको लिए चली जा रही है .
तुम्हारी यादों का गीत गूंजता रहता है ,
धडकने संगत करती चली जा रहीं हैं .
प्यार एक नदी है सींचती है कायनात को
सबके दिलों में जो बहती चली जा रही है .
ज़बरन कब्ज़ा कर बैठे हो मेरे घर पर तुम
इस बात से मुझे ख़ुशी क्यों होती चली जा रही है .
तुम भी नहीं भूलते हो मुझे एक पल के लिए
तभी तेज़ इतनी आग होती चली जा रही है
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मौत को निहारा है
धूप में बादल, रेत में धार, मंझधार में किनारा है,
खो चुका है मेरा नाम जिसमें वह नाम तुम्हारा है .
कब से चलते रहें हैं हम दोनों साथ-साथ पता नहीं,
तुम रहे हो पास मेरे, इसीलिये मन नहीं हारा है .
बीतते समय के साथ बदलते गए सभी चेहरे
तपती धूप में भी न बदला वो चेहरा तुम्हारा है .
मेरे यार के नाम से ही हो जाता है कुछ जादू ,
रात बन गयी है सुबह जब-जब मैंने उसे पुकारा है .
ताउम्र रहे साथ तो अब रहोगे ही आखीर तक,
इसीसे बेख़ौफ़ होकर मैंने मौत को निहारा है .
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