Thursday 11 July 2013

दो ग़ज़लें


प्यार एक नदी है 
         
 
धार थी पतली, बाढ़ बनती चली जा रही है,
बेबस बहाती मुझको लिए चली जा रही है .
 
तुम्हारी यादों का गीत गूंजता रहता है  ,
धडकने  संगत करती चली जा रहीं हैं . 
 
प्यार एक नदी है सींचती है कायनात को 
सबके दिलों में जो बहती चली जा रही है .
 
ज़बरन कब्ज़ा कर बैठे हो मेरे घर पर तुम 
इस बात से मुझे ख़ुशी क्यों होती चली जा रही है .
 
तुम भी नहीं भूलते हो मुझे एक पल के लिए 
तभी तेज़ इतनी आग होती चली जा रही है
.
             ******************
 
मौत को निहारा है 
           
 
धूप में बादल, रेत में धार, मंझधार में किनारा है,
 खो चुका है मेरा नाम जिसमें वह नाम तुम्हारा है .
 
कब से चलते रहें हैं हम दोनों साथ-साथ पता नहीं,
तुम रहे हो पास मेरे, इसीलिये मन नहीं हारा है .
 
बीतते समय के साथ बदलते गए सभी चेहरे 
तपती धूप में भी न बदला वो चेहरा तुम्हारा है .
 
मेरे यार के नाम से ही हो जाता है कुछ जादू ,
रात बन गयी है सुबह जब-जब मैंने उसे पुकारा है .
 
ताउम्र रहे साथ तो  अब रहोगे ही आखीर तक,
इसीसे बेख़ौफ़ होकर मैंने मौत को निहारा  है . 
 
             ************************