गज़ल
दुल्हन बनी सडकों पर गरीबी खो जाती है
भगवान् आ रहे हैं, जनता दौड़ी जाती है
शब्दों को नहीं अपने को घिसा होगा उसने
तभी उसकी बातें यूं दिल में उतर जाती हैं
सच की तख्ती कब-कैसे गिरी, गायब हो गयी
अब तो सारी गलियां झूठ के घर जाती हैं
तुमसे तो बहुत अच्छी है तुम्हारी याद ही
तुम नहीं आते तुम्हारी याद जाती नहीं है
पेड़ों को जब पत्तों की ज़रुरत नहीं होती
हवा बुलाकर उनको अपने घर ले जाती है
एक पेड़ नहीं मिलता और उसपर दो पंछी
छत ही खरीदने में ज़िन्दगी निकल जाती है
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