Tuesday 7 February 2012
न कहना भी बोलता है
बोल देना ही सबकुछ नहीं होता
कभी-कभी बहुत भरा हुआ मन
एक शब्द भी नहीं बोल पाता
और शब्द आकाश में बादलों की तरह
छाये रह जाते हैं
चीज़ों से अधिक खालीपन का अस्तित्व है
खालीपन में ही सारी दुनिया है
चीज़ों का अस्तित्व है
जैसे मौन की गोद में शब्द खेलते हैं
शब्दों को जन्म लेना होता है
और बोलना होता है
नीला समाधिस्थ स्वयंभू मौन
कितना-कुछ करता-कहता रहता है
मौन के आकाश में ही
शब्दों के बादल घिर आते हैं
कभी झरते हैं
कभी खूब बरसते हैं
और जब छाये रह जाते हैं
तो बरसने के लिए मचलते रह जाते हैं
आकाश शब्दों को ध्वनि देकर
गूंगा नहीं हो जाता
और नहीं बादलों को बरसाकर खाली ही
भाषा के बिना भी एक भाषा है
उसे जानती है माँ
वह शिशु के बिना बोले
उसकी भूख-प्यास-पीड़ा
सब समझती है
भाषा के बिना भी उगता है सूरज
अँधेरे की दहशत मिटाता है
भाषा के बिना यादें उम्र-भर जीती हैं
भाषा के बिना भी दुनिया चलती रहती है
भाषा का न होना भी एक भाषा है
# # #
एक आम आदमी
उसे पहली बार देखा था
ओठों पर मुस्कराहट थी
जसे वह किसी पर भी हंस सकता था
दूसरी बार जब मिला था
काम के प्रश्नों से उसके ओठ मुस्कुराना भूल चुके थे
सोती रात की जागती आँखों की बेचैनी
उसके चेहरे पर सक्रिय थी
वह तीसरी बार मिला था
काम करता हुआ और शांत
उसकी शान्ति
मुस्कुराहट और बेचैनी
दोनों चबा गयी थी
उसके चेहरे पर लकीरें आ गयीं थीं
जिन्हें अभी नहीं आना चाहिए था
वह एक आम आदमी था
# # #
Subscribe to:
Posts (Atom)