Tuesday 7 February 2012


औरत

गोधूली में
घर की ओर लौटती गौ की तरह
वह आफिस से लौट रही है

अक्सर वह दिखाई दे जाती है सड़क पर
कभी कैरियर में कद्दू दबा होता है
तो कभी बोरी में गेंहूं
वह तेजी से आ रही है
अपनी धुन में पैदल मारती हुई

रिश्ते बछड़े की तरह इंतज़ार कर रहे हैं
वह आ रही है घर में 
आंच जलाने के लिए
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2 comments:

  1. Reads well. Very sharp images and crisp tone. You have the making of a good modern poet. Do keep it up. murari

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  2. Itni choti kavita par bahut achi. Iskey liye dhanyavaad.

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